Thursday, January 16, 2025
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Crude Oil के दाम बढ़ने से भारत रिजर्व आयल का करेगा इस्तेमाल

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Crude Oil

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव आसमान छू रहा है। 8 साल में पहली बार क्रूड आयल 101 डॉलर प्रति बैरल के पार हुआ है। इसका सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ने वाला है क्योंकि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है और अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत तेल आयात करता है। ऐसे में आशंका है कि कच्चा तेल भारत का इंपोर्ट बिल बढ़ाकर ट्रेड डेफिसिट को ज्यादा कर सकता है।

हालांकि भारत में पिछले 3 महीने से ज्यादा समय से तेल की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं। लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि 10 मार्च को 5 राज्यों में मतगणना के बाद तेल की कीमतों में उछाल आ सकता है। इससे पहले से महंगाई झेल रही जनता की जेब और ज्यादा हल्की हो सकती है।

हालांकि इस स्थिति से निपटने के लिए सरकान ने तैयारी भी शुरू दी है। सरकार ने नेशनल आॅयल स्टॉक से ज्यादा तेल निकालने का फैसला किया है। सरकार ने नवंबर में आयल रिजर्व से 5 मिलियन बैरल तेल निकालने का फैसला किया था। इसमें से अब तक 3.5 मिलियन बैरल तेल निकाला जा चुका है।

अमेरिका भी कर रहा Crude Reserve से एडिशनल तेल निकालने पर विचार

सरकार अभी यूक्रेन में चल रहे संघर्ष के कारण तेल की कीमत में हो रहे बदलाव पर लगातार नजरें रख रही है। इससे पहले वीरवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी कहा था कि अमेरिका दुनिया के अन्य देशों के साथ मिलकर कच्चे तेल की कीमत में उछाल पर नजर बनाए हुए है। बढ़ते दाम के बीच ग्लोबल स्ट्रैटिजीक क्रूड रिजर्व (Crude Reserve) से एडिशनल तेल निकालने पर विचार किया जा रहा है।

जनवरी में 84 डालर प्रति बैरल था Crude Oil का दाम

जानना जरूरी है कि इंडियन क्रूड आयल बास्केट के लिए फरवरी में औसत कीमत 93 डॉलर प्रति बैरल थी। यह जनवरी के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा है। इससे पहले जनवरी में क्रूड आयल की औसत कीमत 84.2 डॉलर प्रति बैरल थी। इसके बाद से अब तक कच्चे तेल के भाव में लगभग 19 डॉलर का उछाल आ चुका है। इसके बावजूद भारत में पेट्रोल-डीजल का दाम पिछले 3 महीने से नहीं स्थिर है।

रूस से प्रतिदिन निकलता है 50 लाख बैरल कच्चा तेल

बता दें कि रूस से प्रतिदिन 50 लाख बैरल कच्चा तेल निर्यात होता है। इस लिहाज से रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक और तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यूरोप की 48 और एशियाई देशों की 42 फीसद निर्भरता रूस पर ही है। इसलिए रूस से आयात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

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