Saturday, November 9, 2024
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Inflation: लंबी चलेगी महंगाई पर काबू पाने की लड़ाई, लेकिन जरूर नीचे आएंगी कीमतें – RBI

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इस समय महंगाई से हर कोइ परेशान है लोगों कि जेबों पर महंगाई का असर देखा जा सकता है, इसी बिच महंगाई को लेकर आरबीआई क एक बड़ा बयान सामने आया है आपको बता दे कि आरबीआई ने कहा है कि महंगाई पर काबू पाने की लड़ाई लंबी चलेगी क्योंकि मौद्रिक नीति के तहत उठाए कदमों का असर दिखने में थोड़ा समय लगेगा। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल देवव्रत पात्रा ने कहा, अगर हम इसमें सफल होते हैं तो नकारात्मक महंगाई से जूझ रही बाकी दुनिया के मुकाबले सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक के तौर पर भारत की संभावनाएं मजबूत करेंगे।

पात्रा की अगुवाई वाली टीम ने अर्थव्यवस्था की हालत पर लिखे लेख में कहा, महंगाई के खिलाफ जारी जंग का सुखद नतीजा विदेशी निवेशकों में नया जोश भरेगा। बाजारों और जीडीपी को स्थिरता देगा। खुदरा महंगाई सितंबर में बढ़कर 7.41 फीसदी पर पहुंच गई।

कठोर नीतियों का असर दिखना अभी बाकी

आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य जयंत आर वर्मा ने कहा कि कठोर मौद्रिक नीतियों का महंगाई पर असर अगली 5-6 तिमाहियों के बाद ही दिखेगा। उन्होंने कहा, हमारा महंगाई का लक्ष्य 4 फीसदी है जिसमें 2 फीसदी कम या ज्यादा का भी विकल्प है। उन्होंने कहा, इसमें संदेह नहीं है कि केंद्रीय बैंक के इस कदम से महंगाई कम होगी। हालांकि, कठोर नीतियों का असर दिखना अभी बाकी है। इसका असर दिखेगा और कीमतें भी नीचे आएंगी।

हरित जीडीपी के लिए बने एक अलग इकाई 

आरबीआई ने बुलेटिन में हरित जीडीपी के लिए पर्यावरण मंत्रालय के तहत एक समर्पित इकाई बनाने का भी सुझाव दिया है। यह इकाई पर्यावरणीय नुकसान, प्राकृतिक संसाधनों में कमी और संसाधनों की बचत से जुड़ी गणनाएं कर जीडीपी में उनका समायोजन करेगा। भारत के सामाजिक व विकास उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए वित्तीय प्रणाली को हरित वित्त पोषण की ओर बढ़ने की जरूरत है। 

क्या होता है ‘ग्रीन जीडीपी?

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के मुताबिक ग्रीन जीडीपी का मतलब जैविक विविधता की कमी और जलवायु परिवर्तन के कारणों को मापना है। ग्रीन जीडीपी का मतलब पारंपरिक सकल घरेलू उत्पाद के उन आँकड़ों से है, जो आर्थिक गतिविधियों में पर्यावरणीय तरीकों को स्थापित करते हैं। किसी देश की ग्रीन जीडीपी से मतलब है कि वह देश सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिये किस हद तक तैयार है। इसका मतलब यह है कि हरित जीडीपी पारंपरिक जीडीपी का प्रति व्यक्ति कचरा और कार्बन के उत्सर्जन का पैमाना है।


हरित अर्थव्यवस्था वह होती है जिसमें सार्वजनिक और निजी निवेश करते समय इस बात को ध्यान में रखा जाए कि कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण कम से कम हो, ऊर्जा और संसाधनों की प्रभावोत्पादकता बढ़े तथा जो जैव विविधता और पर्यावरण प्रणाली की सेवाओं के नुकसान कम करने में मदद करे।

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