इंडिया न्यूज, नई दिल्ली।
Privatization Banks: केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों को निजीकरण करने वाले फैसले पर वॉयस ऑफ बैंकिंग के संस्थापक एवं पूर्व बैंक कर्मी अश्वनी राणा ने कड़ा विरोध दर्ज किया और इस फैसले को देश अहित करार दिया है। उन्होंने बताया किया केंद्र सरकार ने दो सार्वजनिक बैंकों को निजीकरण करने की तैयारी कर ली है। संसद में चल रहे शीतकालीन सत्र में बैंकिंग संसोधन बिल 2021 प्रस्तावित है।
निजी बैंकों को जीवनदान दिया है सरकारी बैंकों ने Privatization Banks
वॉयस ऑफ बैंकिंग के संस्थापक एवं पूर्व बैंक कर्मी राणा ने इंडिया न्यूज बिजेनस को बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का देश की अर्थवयवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है । केंद्र सरकार अगर इन बैंकों का निजीकरण करती है तो इससे देश की अर्शव्यवस्था के साथ आमजनमानस पर भी व्यापक प्रभाव पड़ेगा। जन, शहर और गांवों तक लोगों को सेवा पहुंचाने में इन बैंकों का बहुत बड़ा योगदान है। राणा ने कहा कि जब देश में कोई भी निजी बैंक घाटे के चलते बाजार में डूबा है तो इन्हीं सरकारी बैंकों ने उन बैंकों को संभाला है। ऐसे में इन सरकारी बैंकों को निजी के हाथों में सौंपना काफी खतरनाक साबित हो सकता है और सभी स्टेक होल्डर्स पर असर दिखाई पड़ेगा।
1.5 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य है वित्तमंत्री का Privatization Banks
राणा ने बताया कि पिछले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार दो सरकारी बैंकों, एक बीमा कंपनी और कुछ अन्य वित्तीय संस्थानों में विनिवेश के जरिए 1.5 लाख करोड़ रुपये जुटाना चाहती है। उन्होंने बताया कि मौजूदा समय देश में 12 सरकारी, 14 ओल्ड जनरेशन बैंक, 8 न्यू जनरेशन बैंक, 11 छोटे वित्तीय बैंक और 43 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं, जिनकी 1 लाख 42 हजार शाखाएं हैं। इसमें 46 विदेशी बैंकों की शाखाएं भी शामिल हैं। 19 जुलाई 1969 को देश के 14 प्रमुख बैंकों का पहली बार राष्ट्रीयकरण किया गया था और बाद में 6 और बैंक नेशनलाइज हुए। हालांकि इस वर्ष बीत जाने के बाद अब सरकार यूटर्न लेती दिख रही है।
निजीकरण से इन पर पड़ेगा प्रभाव Privatization Banks
सरकारी योजनाओं पर असर: सरकार की सभी योजनाएं जैसे, जनधन योजना, अटल पेंशन, प्रधानमंत्री कृषि, स्वास्थ्य, बीमा इत्यादि को ज्यादातर सरकारी बैंकों के माध्यम से ही जतना तक पहुंचाती है। इसके जाने से जनता की योजनाओं पर प्रभाव पड़ेगा।
ग्राहकों पर असर: सरकारी क्षेत्र के बैंक सोशल बैंकिंग करते हैं। व निजी क्षेत्र के बैंक क्लास बैंकिंग करते हैं। सरकारी बैंकों के मुकाबले प्राइवेट बैंकों ब्याज दरों के मामले में उनका रवैया एक समान नहीं रहता। इसके अलावा प्राइवेट बैंकों के अपने हिडेन चार्जेज भी होते हैं।
कर्मचारियों पर असर: बैंकों के कर्मचारी सब से ज्यादा प्रभावित होंगे। कर्मचारियों की छटनी होगी, नई भर्ती परमानेंट न होकर कॉन्ट्रैक्ट पर होगी। इसके अलावा कर्मचारियों को मिलने वाली आरक्षण की सुविधा भी समाप्त हो जाएगी ।
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