Sbi Hike MCLR 10 Bps
इंडिया न्यूज,नई दिल्ली। पिछले कई महीनों से देश की सार्वजनिक और निजी बैंक अपने कर्ज ब्याज दरें यानी MCLR में बढ़ोतरी कर रही हैं। इस कड़ी में गुरुवार को देश की सबसे बड़ी सार्वजनिक बैंक भारतीय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने अपने मार्जिनल कॉस्ट पर आधारित कर्ज की दरों (MCLR) में इजाफा किया है। यह बैंक की दूसरी बार MCLR में इजाफा है। इससे पहले जून में MCLR में इजाफा कर चुकी है। गुरुवार को SBI ने जो MCLR में बढ़ोतरी की है, वह 10 बीपीएस (0.10 फीसदी) है। इसकी बढ़ी हुई नए दरें 15 जुलाई, 22 शुक्रवार से लागू हो जाएंगी। बैंक के इस कदम से बाद से मौजूदा ईएमआई और नए कर्ज महंगे हो जाएंगे।
इन वजहों से बैंक बढ़ा रहे ब्याज दरें
दरअसल, केंद्रीय बैंक द्वारा जून हुई मौद्रिक नीति की बैठक में 0.50 फीसदी की रेपो रेट की वृद्धि की थी। उसके बाद यह से यह बढ़कर 4.90 फीसदी हो गई थी। तब से लगातार देश की बैंक अपनी कर्ज ब्याज दरों और अन्य ब्याज दरों में इजाफा कर रही हैं। जून से पहले रिजर्व बैंक ने मई में 40 बेसिस प्वॉइंट की रेपो रेट में वृद्धि की थी, तब यह 4.40 फीसदी हो गई थी। तभी बैंकों ने अपने कर्ज ब्याज दरों में इजाफा किया था। मई में वृद्धि से पहले रिजर्व बैंक का रेपो रेट 4.00 फीसदी रेपो रेट था।
इन अविध वाले लोन बढ़े
एसबीआई की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक, MCLR में बढ़ोतरी के बाद बैंक का ओवरनाइट, एक महीने और तीन महीने का एमसीएलआर 7.05 फीसदी से बढ़कर 7.15 फीसदी हो गया है। छह महीने की अवधि वाले कर्ज का एमसीएलआर 7.35 फीसदी से बढ़कर 7.45 फीसदी हो गई है। एक साल का एमसीएलआर 7.4 फीसदी से बढ़कर 7.5 फीसदी पर पहुंच गई है और दो साल का एमसीएलआर 7.7 फीसदी से बढ़कर 7.8 फीसदी किया गया है।
यह होता है MCLR
भारत में MCLR सिस्टम को भारतीय रिजर्व बैंक ने 2016 में पेश किया था। यह किसी फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन के लिए एक इंटरनल बेंचमार्क है। MCLR प्रोसेस में लोन के लिए मिनिमम ब्याज दर तय की जाती है। आम भाषा में कहें तो मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट्स (MCLR) भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा तय की गई एक पद्धति है, जो कॉमर्शियल बैंक्स द्वारा ऋण पर ब्याज दर तय करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। आपको बता दें कि एमसीएलआर के तहत बैंकों को हर महीने अलग-अलग अवधि के लिए ब्याज दरों का ऐलान करना होता है। एमसीएलआर कर्ज की न्यूनतम ब्याज दर है, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि आमतौर पर वास्तविक दर अधिक होती है क्योंकि बैंक कर्ज से जुड़े रिस्क को भी ध्यान में रखते हैं।
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