Friday, October 18, 2024
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Story Of State Bank Of India

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Story Of State Bank Of India

जानिए कैसे शुरुआत हुई स्टेट बैंक आफ इंडिया की Story Of State Bank Of India

मुख्यालय कोपोर्रेट सेंटर, मुंबई, भारत
स्थापना भारत कलकत्ता, 1806 (बैंक आफ कलकत्ता के रूप मे)

इंडिय न्यूज, नई दिल्ली:
2 जून 1806 को कलकत्ता में बैंक आफ कलकत्ता की स्थापना हुई थी। तीन वर्षों के बाद इसको चार्टर मिला और इसका पुनर्गठन बैंक आफ बंगाल के रूप में 2 जनवरी 1809 को हुआ। यह अपनी तरह का अनोखा बैंक था जो साझा स्टॉक पर ब्रिटिश भारत और बंगाल सरकार की ओर से चलाया जाता था। बैंक आफ बॉम्बे और बैंक आफ मद्रास की शुरुआत बाद में हुई।

ये तीनों बैंक आधुनिक भारत के प्रमुख बैंक तब तक बने रहे जब तक इनका विलय इंपीरियल बैंक आफ इंडिया में 28 जनवरी 1921 को नहीं कर दिया गया। सन 1941 में पहली पंचवर्षीय योजना की नींव डाली गई, जिसमें गांवों के विकास पर जोर डाला।

इस समय तक इंपाीरियल बैंक आफ इंडिया का कारोबार सिर्फ शहरों तक सीमित था। अत: ग्रामीण विकास के मद्देनजर एक ऐसे बैंक की कल्पना की गई, जिसकी पहुंच गांवों तक हो तथा ग्रामीण जनता को जिसका लाभ हो सके। इस कारण से 1 जुलाई 1944 को स्टेट बैंक आफ इंडिया की स्थापना की गई।

इसमें सरकार की हिस्सेदारी 61.58% हैं। अपने स्थापना के समय में स्टेट बैंक के कुल 480 कार्यालय थे, जिसमें शाखाएं, उप शाखाएं और तीन स्थानीय मुख्यालय शामिल थे, जो इंपीरियल बैंकों के मुख्यालयों को बनाया गया था। 1926 में यंग की अनुशंसा पर 1 अप्रैल 1935 को RBI की स्थापना की गई।

जबकि इसका राष्ट्रीयकरण 1 जनवरी 1949 को किया गया। इसका मुख्यालय मुंबई में है RBI के पहले गवर्नर सर ओसबोर्न स्मिथ हैं। जबकि वर्तमान में इस के गवर्नर शक्तिकांत दास हैं कार्य नोट का निर्गमन वर्तमान में आरबीआई 1957 में प्रचलित न्यूनतम रिजर्व प्रणाली के आधार पर 2 से लेकर 2000 तक का नोट का निगमन करती है जबकि 1 के नोट का निगमन भारत सरकार की ओर से किया जाता रहा है।

यह है बैंक से दूसरे बैंक तक सफर (Story Of State Bank Of India)

State Bank Of India का प्रादुर्भाव उन्नीसवीं शताब्दी के पहले दशक में 2 जून 1806 को बैंक आफ कलकत्ता की स्थापना के साथ हुआ। 3 साल बाद बैंक को अपना चार्टर प्राप्त हुआ और इसे 2 जनवरी 1809 को बैंक आफ बंगाल के रूप में पुनगर्ठित किया गया। यह एक बैंक एवं वित्तीय संस्था है। इसका मुख्यालय मुंबई में है।
बैंक आफ बंगाल के बाद बैंक आफ बॉम्बे की स्थापना 15 अप्रैल 1840 को तथा बैंक आफ मद्रास की स्थापना 1 जुलाई 1843 को की गई। ये तीनो बैंक 27 जनवरी 1921 को उनका इंपीरियल बैंक आफ इंडिया के रूप में समामेलन होने तक भारत में आधुनिक बैंकिंग के शिखर पर रहे।
एंग्लो-इंडियनों की ओर से सृजित तीनों प्रसिडेंसी बैंक सरकार को वित्त उपलब्ध कराने की बाध्यता अथवा स्थानीय यूरोपीय वाणिज्यिक आवश्यकताओं के चलते अस्तित्व में आए न कि किसी बाहरी दबाव के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के लिए इनकी स्थापना की गई।
परंतु उनका प्रादुर्भाव यूरोप तथा इंग्लैंड में हुए इस प्रकार के परिवर्तनों के परिणामस्वरुप उभरे विचारों तथा स्थानीय व्यापारिक परिवेश व यूरोपीय अर्थव्यवस्था के भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़ने एवं विश्व-अर्थव्यवस्था के ढांचे में हो रहे परिवर्तनों से प्रभावित था।

बैंकिंग क्षेत्र में था नया प्रयोग (Story Of State Bank Of India)

SBI 2

बैंक आफ बंगाल की स्थापना के साथ ही भारत में सीमित दायित्व व संयुक्त-पूंजी बैंकिंग का आगमन हुआ। बैंकिंग क्षेत्र में भी इसी प्रकार का नया प्रयोग किया गया। बैंक आफ बंगाल को मुद्रा जारी करने की अनुमति देने का निर्णय किया गया। ये नोट कुछ सीमित भौगोलिक क्षेत्र में सार्वजनिक राजस्व के भुगतान के लिए स्वीकार किए जाते थे।
नोट जारी करने का यह अधिकार न केवल बैंक आफ बंगाल के लिए महत्त्वपूर्ण था, अपितु उसके सहयोगी बैंक, बैंक आफ बाम्बे और मद्रास के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण था अर्थात इससे बैंकों की पूंजी बढ़ी, ऐसी पूंजी जिस पर मालिकों को किसी प्रकार का ब्याज नहीं देना पड़ता था।
जमा बैंकिंग अवधारणा भी एक नया कदम था क्योंकि देशी बैंकरों द्वारा भारत के अधिकांश प्रांतों में सुरक्षित अभिरक्षा हेतु राशि (कुछ मामलों में ग्राहकों की ओर से निवेश के लिए) स्वीकार करने का प्रचलन एक आम आदमी की आदत नहीं बन पाई थी। परंतु एक लंबे समय तक, विशेषकर उस समय जब तक कि तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों को नोट जारी करने का अधिकार नहीं था बैंक नोट तथा सरकारी जमा-राशियां ही अधिकांशत: बैंकों के निवेश योग्य साधन थे।

यह है बैंक का व्यवसाय (State Bank Of India)

प्रारंभ में बैंकों का व्यवसाय बट्टे पर विनिमय बिल अथवा अन्य परक्राम्य निजी प्रतिभूतियों को भुनाना, रोकड़ खातों का रख-रखाव और जमाराशियां प्राप्त करना, नकदी नोट जारी और परिचालित करना था। एक लाख तक ही ऋण दिए जाते थे और निभाव अवधि केवल 3 माह तक होती थी। ऐसे ऋणों के लिए जमानत सार्वजनिक प्रतिभूतियां थीं जिन्हें सामान्यतया कंपनी पेपर, बुलियन, कोष, प्लेट, हीरे-जवाहरात अथवा नष्ट न होने वाली वस्तु कहा जाता था और बारह प्रतिशत से अधिक ब्याज नहीं लगाया जा सकता था।
अफीम, नील, नमक, ऊनी कपड़े, सूत, सूत से बनी वस्तुएं, सूत कातने की मशीन तथा रेशमी सामान आदि के बदले ऋण दिए जाते थे परंतु नकदी ऋण के माध्यम से वित्त में तेजी केवल उन्नीसवीं सदी के तीसरे दशक से प्रारंभ हुई। सभी वस्तुएं जिनमें चाय, चीनी और पटसन बैंक में गिरवी रखा जाता था जिनका वित्त-पोषण बाद में प्रारंभ हुआ।
मांग-वचन पत्र उधारकर्ता द्वारा गारंटीकर्ता के पक्ष में जारी किए जाते थे जो बाद में बैंक को पृष्ठांकित कर दिए जाते थे। बैंको के शेयरों पर अथवा बंधक बनाए गए गृहों, भूमि अथवा वास्तविक संपत्ति पर उधार देना वर्जित था।
कंपनी पेपर जमा करके उधार लेने वालों में उधारकर्ता मुख्यतया भारतीय थे जबकि निजी एवं वेतन बिलों पर बट्टे के व्यवसाय पर मूल रूप से यूरोपीय नागरिकों तथा उनकी भागीदारी संस्थाओं का लगभग एकाधिकार था। परंतु जहाँ तक सरकार का संबंध है इन तीनों बैंको का मुख्य कार्य समय-समय पर ऋण जुटाने में सरकार की सहायता करना व सरकारी प्रतिभूतियों के मूल्यों को स्थिरता प्रदान करना था।

पस्थितियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन

बैंक आफ बंगाल, बॉम्बे तथा मद्रास के परिचालन की शर्तों में 1860 के बाद महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। 1861 के पेपर करेंसी एक्ट के पारित हो जाने से प्रेसिडेंसी बैंकों का मुद्रा जारी करने का अधिकार समाप्त कर दिया गया तथा 1 मार्च 1862 से ब्रिटेन शासित भारत में कागजी मुद्रा जारी करने का मूल अधिकार भारत सरकार को प्राप्त हो गया।
नई कागजी मुद्रा के प्रबंधन एवं परिचालन का दायित्व प्रेसिडेंसी बैंको को दिया गया तथा भारत सरकार ने राजकोष में जमाराशियों का अंतरण बैंकों को उन स्थानों पर करने का दायित्व लिया जहाँ बैंक अपनी शाखाएँ खोलने वाले हों। तब तक तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों की कोई शाखा नहीं थी (सिवाय बैंक आफ बंगाल द्वारा 1839 में मिरजापुर में शाखा खोलने के लिए किया गया एक मात्र छोटा सा प्रयास) जबकि उनके संविधान के अंतर्गत उन्हें यह अधिकार प्राप्त था। परंतु जैसे ही तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों को राजकोष में जमाराशियों का बिना रोक-टोक उपयोग करने का आश्वासन मिला तो उनके द्वारा तेजी से उन स्थानों पर बैंक की शाखाएँ खोलना प्रारंभ कर दिया गया।
सन् 1876 तक तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों की शाखाएँ, अभिकरण व उप-अभिकरणों ने देश के प्रमुख क्षेत्रों तथा भारत के भीतरी भागों में स्थित व्यापार केंद्रो में अपना विस्तार कर लिया। बैंक आॅफ बंगाल की 18 शाखाएँ थीं जिसमें उसका मुख्यालय, अस्थायी शाखाएँ, तथा उप-अभिकरण शामिल हैं जबकि बैंक आॅफ बॉम्बे एवं मद्रास प्रत्येक की 15 शाखाएँ थीं।

सहयोगी बैंक (State Bank Of India)

स्टेट बैंक आफ बीकानेर एंड जयपुर
स्टेट बैंक आफ हैदराबाद
स्टेट बैंक आफ मैसूर
स्टेट बैंक आफ पटियाला
स्टेट बैंक आफ त्रावणकोर
स्टेट बैंक आफ इंदौर
स्टेट बैंक आफ सौराष्ट
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