What is GDP
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (NSO) ने शुक्रवार को आंकड़े जारी किए हैं जिनके मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 में देश की विकास दर 9.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जबकि पिछले वित्त वर्ष में कोविड-19 महामारी और उससे निपटनके के लिए लगाए गए प्रतिबंधों के कारण इसमें 7.3% की गिरावट आई थी।
किसी भी देश की जीडीपी का असर वहां के नागरिकों के जीवन पर पड़ता है। लेकिन बहुत से लोगों को ये पता ही नहीं होता है कि GDP क्या होती है? बहुत से लोगों के मन में जीडीपी को लेकर ढेर सारे सवाल होते हैं। ऐसे में आज हम आपको बता रहे जीडीपी के बारे में विस्तार से-
क्या होती है GDP
GDP किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत पता चलती है। अत: किसी देश में एक निर्धारित समय के अंदर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहते हैं। भारत में इसे हर तीन महीने यानी तिमाही भी आंका जाता है। लेकिन आमतौर पर इसकी गणना सालाना होती है। जब इकोनॉमी हेल्दी होती है, तो आमतौर पर बेरोजगारी का लेवल कम होता है।
कौन तय करता है GDP
जीडीपी को नापने की जिम्मेदारी सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के तहत आने वाले सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स आफिस यानी केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की है। यह कार्यालय ही पूरे देश से आंकड़े इकट्ठा करता है और उनकी कैलकुलेशन कर जीडीपी का आंकड़ा जारी करता है।
दो तरह की होती है GDP
GDP दो तरह की होती है Real GDP और नॉमिनल जीडीपी। Real GDP में गुड्स और सर्विस की वैल्यू का कैल्कुलेशन बेस ईयर की वैल्यू या स्टेबल प्राइस पर किया जाता है। GDP को कैल्कुलेट करने के लिए बेस ईयर 2011-12 है। यानी 2011-12 में गुड्स और सर्विस के जो रेट थे उस हिसाब से कैल्कुलेशन होता है।
रियल जीडीपी में महंगाई के असर को भी समायोजित कर लिया जाता है. यानी अगर किसी वस्तु के मूल्य में 10 रुपए की बढ़त हुई है और महंगाई 4 फीसदी है तो उसके रियल मूल्य में बढ़त 6 फीसदी ही मानी जाएगी। वहीं नॉमिनल GDP का आंकलन करेंट प्राइस पर किया जाता है। नॉमिनल जीडीपी सभी आंकड़ों का मौजूदा कीमतों पर योग होता है।
आम लोगों पर क्या फर्क पड़ता है GDP का (What is the effect of GDP on common people)
किसी भी देश के नागरिकों पर वहां की जीडीपी का काफी असर पड़ता है। यदि जीडीपी के आंकड़े लगातार कमजोर होते हैं तो ये देश के लिए खतरा होता है। जीडीपी गिरने के कारण लोगों की औसत आय कम हो जाती है और लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। इसके अलावा बेरोजगारी बढ़ती है। आर्थिक कमजोरी की वजह से छंटनी की आशंका बढ़ जाती है। ऐसा होने पर लोगों की सेविंग और निवेश भी कम हो जाता है।
GDP से संबंधित फैक्ट्स
- सबसे पहले 1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के बाद ही देशों की अर्थव्यवस्था को मापने के लिए जीडीपी का इस्तेमाल किया जाने लगा।
- पहले जीडीपी में देश में रहने वाले और देश से बाहर रहने वाले सभी नागरिकों की आय को जोड़ा जाता था, जिसे अब ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट कहा जाता है.
- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार अप्रैल 2019 तक भारत का कुल जीडीपी (नॉमिनल यानी मौजूदा कीमतों पर) 2.972 अरब डॉलर था।
- दुनिया के कुल जीडीपी में भारत का हिस्सा करीब 3.36 फीसदी है।
- भारत का रियल जीडीपी (2011-12 की स्थिर कीमतों पर) 140.78 लाख करोड़ रुपए था।
- जीडीपी आंकड़ों की इस मामले में आलोचना की जाती है कि इसे जीवन स्तर का पैमाना नहीं माना जा सकता।
कैसे होती है GDP की गणना (How is GDP calculated)
भारत में कृषि, उद्योग और सेवा तीन अहम हिस्से हैं, जिनके आधार पर जीडीपी तय की जाती है। इसके लिए देश में जितना भी प्रोडक्शन होता है, जितना भी व्यक्तिगत उपभोग होता है, व्यवसाय में जितना निवेश होता है और सरकार देश के अंदर जितने पैसे खर्च करती है उसे जोड़ दिया जाता है।
इसके अलावा कुल निर्यात (विदेश के लिए जो चीजें बेची गई है) में से कुल आयात (विदेश से जो चीजें अपने देश के लिए मंगाई गई हैं) को घटा दिया जाता है। इसके बाद जो आंकड़ा सामने आता है, उसे भी ऊपर किए गए खर्च में जोड़ दिया जाता है। यही हमारे देश की जीडीपी होता है।
जीडीपी को मापने का अंतरराष्ट्रीय मानक बुक सिस्टम आॅफ नेशनल एकाउंट्स (1993) में तय किया गया है, जिसे SNA93 कहा जाता है। इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, यूरोपीय संघ, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन, संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड बैंक के प्रतिनिधियों ने तैयार किया है।
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